Go To Mantra

भास्व॑ती ने॒त्री सू॒नृता॑नां दि॒वः स्त॑वे दुहि॒ता गोत॑मेभिः। प्र॒जाव॑तो नृ॒वतो॒ अश्व॑बुध्या॒नुषो॒ गोअ॑ग्राँ॒ उप॑ मासि॒ वाजा॑न् ॥

English Transliteration

bhāsvatī netrī sūnṛtānāṁ divaḥ stave duhitā gotamebhiḥ | prajāvato nṛvato aśvabudhyān uṣo goagrām̐ upa māsi vājān ||

Mantra Audio
Pad Path

भास्व॑ती। ने॒त्री। सू॒नृता॑नाम्। दि॒वः। स्त॒वे॒। दु॒हि॒ता। गोत॑मेभिः। प्र॒जाऽव॑तः। नृ॒ऽवतः॑। अश्व॑ऽबुध्यान्। उषः॑। गोऽअ॑ग्रान्। उप॑। मा॒सि॒। वाजा॑न् ॥ १.९२.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:92» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:25» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:7


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसी है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जैसे (सूनृतानाम्) अच्छे-अच्छे काम वा अन्न आदि पदार्थों को (भास्वती) प्रकाशित (नेत्री) और मनुष्यों को व्यवहारों की प्राप्ति कराती वा (दिवः) प्रकाशमान सूर्य्य की (दुहिता) कन्या के समान (उषः) प्रातःसमय की वेला (गोतमेभिः) समस्त विद्याओं को अच्छे प्रकार कहने-सुननेवाले विद्वानों से स्तुति की जाती है, वैसे इसकी मैं (स्तवे) प्रशंसा करूँ। हे स्त्री ! जैसे यह उषा (प्रजावतः) प्रशंसित प्रजायुक्त (नृवतः) वा सेना आदि कामों के बहुत नायकों से युक्त (अश्वबुध्यान्) जिनसे वेगवान् घोड़ों को बार-बार चैतन्य करें (गोअग्रान्) जिनसे राज्य भूमि आदि पदार्थ मिलें, उन (वाजान्) संग्रामों को (उपमासि) समीप प्राप्त कराती है अर्थात् जैसे प्रातःकाल की वेला से अन्धकार का नाश होकर सब प्रकार के पदार्थ प्रकाशित होते हैं, वैसी तू भी हो ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सब गुणों से युक्त सुलक्ष्णा कन्या से पिता, माता, चाचा आदि सुखी होते हैं, वैसे ही प्रातःकाल की वेला के गुण-अपगुण प्रकाशित करनेवाली विद्या से विद्वान् लोग सुखी होते हैं ॥ ७ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सा कीदृशीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

यथा सूनृतानां भास्वती नेत्री दिवो दुहितोषरुषा गोतमेभिः स्तूयते तथैतामहं स्तवे। हे स्त्रि ! यथेयं प्रजावतो नृवतोऽश्वबुध्यान् गोअग्रान् वाजानुपमासि तथा त्वं भव ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (भास्वती) दीप्तिमती (नेत्री) या जनान् व्यवहारान्नयति सा (सूनृतानाम्) शोभनकर्मान्नानाम् (दिवः) द्योतमानस्य सवितुः (स्तवे) प्रशंसामि। अत्र शपो लुङ् न। (दुहिता) कन्येव (गोतमेभिः) सर्वविद्यास्तावकैर्विद्वद्भिः (प्रजावतः) प्रशस्ताः प्रजा येषु तान् (नृवतः) बहुनायकसहितान्। छन्दसीर इति वत्वम्। सायणचार्येणेदमशुद्धं व्याख्यातम्। (अश्वबुध्यान्) अश्वान् वेगवतस्तुरङ्गान् वा बोधयन्त्यवगमयन्त्येषु तान्। अथान्तर्गतो ण्यर्थो बाहुलकादौणादिकोऽधिकरणे यक् च। (उषः) उषाः (गोअग्रान्) गौर्भूमिरग्रे प्राप्नुवन्ति यैस्तान्। गौरित्युपलक्षणं तेन भूम्यादिसर्वपदार्थनिमित्तानि संपद्यन्ते। (उप) (मासि) प्रापयसि (वाजान्) संग्रामान् ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा सर्वगुणसम्पन्नया सुलक्षणया कन्यया पितरौ सुखिनौ भवतः तथोषर्विद्यया विद्वांसः सुखिनो भवन्तीति ॥ ७ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे सर्व गुणांचे आकार असणाऱ्या सुलक्षणी कन्येमुळे पिता, माता, काका इत्यादी सुखी होतात तसेच प्रातःकाळच्या वेळेचे गुण अवगुण प्रकाशित करणाऱ्या विद्येमुळे विद्वान लोक सुखी होतात. ॥ ७ ॥